Thursday 1 September 2016

प्रतिबिंब

बिंब रूपे वर
कमळ सगूण
खालती निर्गूण
प्रतिबिंब

स्पर्श रूप गंध
बिंब उधळते
निवांत राहते
प्रतिबिंब

साहतसे बिंब
वर्षा ऊन वारा
पाहते पसारा
प्रतिबिंब

पाण्याच्या वरती
भोक्ता बिंब डुले
साक्षी रूपे हले
प्रतिबिंब..!

विरताच पाणी
द्वैत मावळते
बिंबात मुरते
प्रतिबिंब..!
***
आसावरी काकडे
१.९.२०१६

No comments:

Post a Comment