Tuesday, 23 May 2017

विवेक,

विवेक,
मस्तिष्क के कौन-से आपे में
बसते हो तुम?

जब बेमतलब गुस्सा आता है
और सबकुछ ध्वस्त कर देता है

जब हवस बेकाबू बन
जीत लेती है संयम को

जब बेबुनियाद चिंता
खरोंचती है दिल को
चूहे की तरह

और उदासी बेवजह
मौत की राह देखने के लिए
मजबूर करती है

तब, तब विवेक
तुम कहाँ मुँह छिपाए बैठते हो?

बोलो, बोलो विवेक
मस्तिष्क के कौन-से आपे में
बसते हो तुम?

बसते हो ना?
***
आसावरी काकडे
२०.५.२०१७

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